लंगर और साफ़ पानी
18 सितम्बर 2017 के दैनिक भास्कर में यह खबर छपी है कि सिख बांग्लादेश में जाकर रोहिंग्या मुसलामानों के लिए लंगर और साफ़ पानी का इंतज़ाम कर रहे हैं!
भारत में मुस्लिम शासनकाल में सिखों की क्रूरतापूर्वक हत्या के कुछ उदाहरण:-
30 मई, 1606 के दिन पाँचवें सिख-गुरु अर्जुन देव जी को गर्म तवे पर बैठाकर ऊपर से खौलता तेल और गरम रेत डाली गयी! पूरे शरीर में फफोले पड़ने के बाद उनके शरीर को रावी नदी में बहा दिया गया!
केश कटवाने से इनकार करने पर 01 जुलाई, 1745 को भाई तारू सिंह के सिर में से खोपड़ी को ही अलग कर दिया गया!
इस्लाम कुबूल न करने पर 09 नवम्बर, 1675 के दिन गुरु तेग बहादुर के शिष्य भाई मतिदास के हाथों को दो खम्भों से बाँधकर और शरीर को लकड़ों के पाटों के बीच जकड़कर आरे से ऊपर से नीचे धीरे-धीरे चीर दिया गया, और तब तक चीरा जाता रहा, जब तक उनके शरीर के साथ लकड़ों के पाट भी दो टुकड़े नहीं हो गये!
09 नवम्बर, 1675 के ही दिन भाई दयालदास को मारने के लिए एक नयी विधि अपनाई गयी! एक बहुत बड़ी देग में पानी भरकर उसमें भाई दयालदास को बैठाया गया, फिर नीचे आग लगा दी गयी। देग का मुँह ढक्कन से बन्द कर दिया गया! पानी को तब तक उबाला गया, जब तक भाई दयालदास की मृत्यु नहीं हो गयी!
10 नवम्बर, 1675 के दिन भाई मतिदास के बड़े भाई सतीदास को रूई में लपेटकर जलाया गया!
सन् 1705 के आसपास गुरु गोविन्द सिंह के समर्पित शिष्य भाई मोतीराम मेहरा को परिवार सहित, जिसमें मोतीराम के छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे, गन्ने पेरनेवाले कोल्हू में गन्ने की तरह निचोड़कर मारा गया! किस भयंकर यातना में उन बच्चों की जान गई होगी, यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता!
12 दिसम्बर, 1705 को गुरु गोविन्द सिंह के दो साहिबजादों, फतेह सिंह एवं जोरावर सिंह को सरहिंद के नवाब ने दीवार में जीवित ही चिनवा दिया! उन 6-7 साल के मासूम बच्चों का कुसूर केवल इतना था कि वे परम स्वाभिमानी बच्चे इस्लाम कुबूल करने के लिए तैयार नहीं थे!
09 जून, 1716 को गुरु गोविन्द सिंह के सेनापति बाबा बन्दा सिंह बहादुर को तरह तरह की यातना देकर मारा गया! गरम लोहे के चिमटों से उनके शरीर की पूरी खाल उतारी गयी! खाल उतारते समय उनके समक्ष उनके मासूम बच्चे को काटकर उसका कलेजा बन्दा सिंह बहादुर के मुंह में ठूंसा गया! अन्त में हाथी के पाँव तले कुचलवाकर बन्दा सिंह बहादुर की हत्या की गयी!
यातनापूर्वक मौत देने के लिए परस्पर जुड़े हुए दो लौहचक्र बनाए गए थे! एक चक्र में लोहे की कीलें और दूसरे में छिद्र थे, जिनमें वे कीलें समा जाती थीं! उन लौहचक्रों में 1745 में भाई सुबेग सिंह एवं भाई शाहबाज सिंह को बाँधकर मारा गया! चक्र को घुमाते समय कीलें उनके शरीर के आर-पार होकर उन छिद्रों में समा जाती थीं!
इस कौम की आज भी यही मनोस्थिति है, आज भी इराक और सीरिया-जैसे देशों में ये मुसलमान हज़ारों की संख्या में यहूदी औरतों और बच्चों को मार रहे हैं
भारत में मुस्लिम शासनकाल में सिखों की क्रूरतापूर्वक हत्या के कुछ उदाहरण:-
30 मई, 1606 के दिन पाँचवें सिख-गुरु अर्जुन देव जी को गर्म तवे पर बैठाकर ऊपर से खौलता तेल और गरम रेत डाली गयी! पूरे शरीर में फफोले पड़ने के बाद उनके शरीर को रावी नदी में बहा दिया गया!
केश कटवाने से इनकार करने पर 01 जुलाई, 1745 को भाई तारू सिंह के सिर में से खोपड़ी को ही अलग कर दिया गया!
इस्लाम कुबूल न करने पर 09 नवम्बर, 1675 के दिन गुरु तेग बहादुर के शिष्य भाई मतिदास के हाथों को दो खम्भों से बाँधकर और शरीर को लकड़ों के पाटों के बीच जकड़कर आरे से ऊपर से नीचे धीरे-धीरे चीर दिया गया, और तब तक चीरा जाता रहा, जब तक उनके शरीर के साथ लकड़ों के पाट भी दो टुकड़े नहीं हो गये!
09 नवम्बर, 1675 के ही दिन भाई दयालदास को मारने के लिए एक नयी विधि अपनाई गयी! एक बहुत बड़ी देग में पानी भरकर उसमें भाई दयालदास को बैठाया गया, फिर नीचे आग लगा दी गयी। देग का मुँह ढक्कन से बन्द कर दिया गया! पानी को तब तक उबाला गया, जब तक भाई दयालदास की मृत्यु नहीं हो गयी!
10 नवम्बर, 1675 के दिन भाई मतिदास के बड़े भाई सतीदास को रूई में लपेटकर जलाया गया!
सन् 1705 के आसपास गुरु गोविन्द सिंह के समर्पित शिष्य भाई मोतीराम मेहरा को परिवार सहित, जिसमें मोतीराम के छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे, गन्ने पेरनेवाले कोल्हू में गन्ने की तरह निचोड़कर मारा गया! किस भयंकर यातना में उन बच्चों की जान गई होगी, यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता!
12 दिसम्बर, 1705 को गुरु गोविन्द सिंह के दो साहिबजादों, फतेह सिंह एवं जोरावर सिंह को सरहिंद के नवाब ने दीवार में जीवित ही चिनवा दिया! उन 6-7 साल के मासूम बच्चों का कुसूर केवल इतना था कि वे परम स्वाभिमानी बच्चे इस्लाम कुबूल करने के लिए तैयार नहीं थे!
09 जून, 1716 को गुरु गोविन्द सिंह के सेनापति बाबा बन्दा सिंह बहादुर को तरह तरह की यातना देकर मारा गया! गरम लोहे के चिमटों से उनके शरीर की पूरी खाल उतारी गयी! खाल उतारते समय उनके समक्ष उनके मासूम बच्चे को काटकर उसका कलेजा बन्दा सिंह बहादुर के मुंह में ठूंसा गया! अन्त में हाथी के पाँव तले कुचलवाकर बन्दा सिंह बहादुर की हत्या की गयी!
यातनापूर्वक मौत देने के लिए परस्पर जुड़े हुए दो लौहचक्र बनाए गए थे! एक चक्र में लोहे की कीलें और दूसरे में छिद्र थे, जिनमें वे कीलें समा जाती थीं! उन लौहचक्रों में 1745 में भाई सुबेग सिंह एवं भाई शाहबाज सिंह को बाँधकर मारा गया! चक्र को घुमाते समय कीलें उनके शरीर के आर-पार होकर उन छिद्रों में समा जाती थीं!
इस कौम की आज भी यही मनोस्थिति है, आज भी इराक और सीरिया-जैसे देशों में ये मुसलमान हज़ारों की संख्या में यहूदी औरतों और बच्चों को मार रहे हैं
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