"न्याय/ अन्याय"
"न्याय/ अन्याय"
महाभारत में कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा-“मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मैंने मेरी माँ की कोख से एक अवैध बच्चे के रूप में जन्म लिया? दोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से इंकार कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था? परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी किन्तु ये श्राप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय समझते थे? भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते मे आकर मर गयी और मुझे गौवध का श्राप मिला? द्रोपदी के स्वयंबर में मुझे अपमानित किया गया क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया? यहाँ तक कि मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा। मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला! तो क्या ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ?
श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले- कर्ण! मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा। मेरा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट, तीर-कमानों के साये में गुज़रा। मैन गायों को चराया, उनके गोबर को उठाया। जब मैं चल भी नही पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए। कोई सेना नही,, कोई शिक्षा नही,, कोई गुरुकुल नही,, कोई महल नही,। मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
जब तुम सब वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे, उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। 16 वर्ष की उम्र में मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। तुम्हे अपनी पसंद के जीवनसाथी से विवाह का अवसर मिलता है और मुझे वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी। मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था। मुझे जरासंध के प्रकोप के कारण अपना सारा कुटुम्ब मथुरा से ले जाकर सुदूर द्वारका मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा!
यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हे भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला। मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझा। हे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनौतियों रहित नही है, सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता। कुछ कमियाँ अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्ठर में भी थीं। सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ द्वारा स्वयं निर्धारित करते हैं। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हम पर अन्याय होता है। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारा अपमान किया जाता है। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है....
फ़र्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं। जीवन मे यदि हमारे साथ कुछ गलत होता है तो उससे हमे कुछ गलत करने का अधिकार नही मिल जाता। किन्ही परिस्थतियों के लिए हम किन्ही दूसरी परिस्थितियों को ज़िम्मेदार नही ठहरा सकते। अन्याय की परिभाषा हम स्वयं तय करते हैं। यदि हम नक़ल करते पकड़े जाएं तो वो अन्याय नही है। यदि ड्यूटी पर रिश्वत लेते पकड़े जाएं तो वो अन्याय नही है। ये हमारी गलतियों का फल हैं, हम उसका प्रतिकार नही कर सकते। जीवन के संघर्षपूर्ण दौर ही हमारी किस्मत तय करते है।
ईश्वर ने हमे दिमाग दिया है लेकिन उसे गलत या सही रूप में इस्तेमाल करने का जिम्मा हमारा है। इश्वेर ने हमे दो हाथ दिया उनसे सोना खोदना है या किसी की कब्र ये निर्णय हमारा है। ईश्वर ने हमे पैर दिये लेकिन उन्हें किस रास्ते पर चलना है ये निर्णय हमारा है।
संघर्ष तो दोनों ओर है लेकिन आप उसका श्रीकृष्ण की तरह सामना करते हैं या कर्ण की तरह ! ये निर्णय आपका है....
महाभारत में कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा-“मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मैंने मेरी माँ की कोख से एक अवैध बच्चे के रूप में जन्म लिया? दोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से इंकार कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था? परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी किन्तु ये श्राप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय समझते थे? भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते मे आकर मर गयी और मुझे गौवध का श्राप मिला? द्रोपदी के स्वयंबर में मुझे अपमानित किया गया क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया? यहाँ तक कि मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा। मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला! तो क्या ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ?
श्रीकृष्ण मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले- कर्ण! मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा। मेरा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट, तीर-कमानों के साये में गुज़रा। मैन गायों को चराया, उनके गोबर को उठाया। जब मैं चल भी नही पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए। कोई सेना नही,, कोई शिक्षा नही,, कोई गुरुकुल नही,, कोई महल नही,। मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
जब तुम सब वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे, उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। 16 वर्ष की उम्र में मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। तुम्हे अपनी पसंद के जीवनसाथी से विवाह का अवसर मिलता है और मुझे वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी। मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था। मुझे जरासंध के प्रकोप के कारण अपना सारा कुटुम्ब मथुरा से ले जाकर सुदूर द्वारका मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा!
यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हे भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला। मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझा। हे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनौतियों रहित नही है, सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता। कुछ कमियाँ अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्ठर में भी थीं। सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ द्वारा स्वयं निर्धारित करते हैं। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हम पर अन्याय होता है। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारा अपमान किया जाता है। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है....
फ़र्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं। जीवन मे यदि हमारे साथ कुछ गलत होता है तो उससे हमे कुछ गलत करने का अधिकार नही मिल जाता। किन्ही परिस्थतियों के लिए हम किन्ही दूसरी परिस्थितियों को ज़िम्मेदार नही ठहरा सकते। अन्याय की परिभाषा हम स्वयं तय करते हैं। यदि हम नक़ल करते पकड़े जाएं तो वो अन्याय नही है। यदि ड्यूटी पर रिश्वत लेते पकड़े जाएं तो वो अन्याय नही है। ये हमारी गलतियों का फल हैं, हम उसका प्रतिकार नही कर सकते। जीवन के संघर्षपूर्ण दौर ही हमारी किस्मत तय करते है।
ईश्वर ने हमे दिमाग दिया है लेकिन उसे गलत या सही रूप में इस्तेमाल करने का जिम्मा हमारा है। इश्वेर ने हमे दो हाथ दिया उनसे सोना खोदना है या किसी की कब्र ये निर्णय हमारा है। ईश्वर ने हमे पैर दिये लेकिन उन्हें किस रास्ते पर चलना है ये निर्णय हमारा है।
संघर्ष तो दोनों ओर है लेकिन आप उसका श्रीकृष्ण की तरह सामना करते हैं या कर्ण की तरह ! ये निर्णय आपका है....
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